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श्नथ॑द्वृ॒त्रमु॒त स॑नोति॒ वाज॒मिन्द्रा॒ यो अ॒ग्नी सहु॑री सप॒र्यात्। इ॒र॒ज्यन्ता॑ वस॒व्य॑स्य॒ भूरेः॒ सह॑स्तमा॒ सह॑सा वाज॒यन्ता॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śnathad vṛtram uta sanoti vājam indrā yo agnī sahurī saparyāt | irajyantā vasavyasya bhūreḥ sahastamā sahasā vājayantā ||

पद पाठ

श्नथ॑त्। वृ॒त्रम्। उ॒त। स॒नो॒ति॒। वाज॑म्। इन्द्रा॑। यः। अ॒ग्नी इति॑। सहु॑री॒ इति॑। स॒प॒र्यात्। इ॒र॒ज्यन्ता॑। व॒स॒व्य॑स्य। भूरेः॒। सहः॑ऽतमा॑। सह॑सा। वा॒ज॒ऽयन्ता॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:60» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पन्द्रह ऋचावाले साठवें सूक्त का प्रारम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में कौन ऐश्वर्य को पाता है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो विद्वान् (सहुरी) सहनशील (इरज्यन्ता) ऐश्वर्य को सिद्ध करते हुए वा (सहस्तमा) अतीव सहन करनेवाले (सहसा) बल से (वाजयन्ता) अन्नादिकों की इच्छा करते हुए (इन्द्रा, अग्नी) पवन और बिजुली को (श्नथत्) ताड़ता है (उत) और (सनोति) प्राप्त होता है तथा (वसव्यस्य) धनादि पदार्थों में हुए (भूरेः) बहुत सुख से (वृत्रम्) धन को प्राप्त होता है और (वाजम्) अन्न को (सपर्यात्) सेवे, वही ऐश्वर्य को पावे ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो आप वायु और बिजुली की विद्या को जानो तो महान् ऐश्वर्यवाले होकर महान् राज्यके स्वामी होओ ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ क ऐश्वर्यं प्राप्नोतीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो विद्वान् सहुरी इरज्यन्ता सहस्तमा सहसा वाजयन्ता इन्द्राग्नी श्नथदुतापि सनोति वसव्यस्य भूरेर्वृत्रं सनोति वाजं सपर्यात् स एवैश्वर्यं प्राप्नुयात् ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्नथत्) हिनस्ति (वृत्रम्) धनम् (उत) अपि (सनोति) प्राप्नोति (वाजम्) अन्नम् (इन्द्रा) (यः) (अग्नी) इन्द्राग्नी वायुविद्युतौ (सहुरी) सोढारौ (सपर्यात्) सेवेत (इरज्यन्ता) ऐश्वर्य्यं सम्पादयन्तौ (वसव्यस्य) वसुषु द्रव्येषु भवस्य (भूरेः) बहोः (सहस्तमा) अतिशयेन सोढारौ (सहसा) बलेन (वाजयन्ता) वाजमन्नादिकमिच्छन्तौ ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यदि भवन्तो वायुविद्युद्विद्यां विजानीयुस्तर्हि महैश्वर्या भूत्वा महतो राज्यस्य स्वामिनो भवेयुः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही जर वायु विद्युत विद्या जाणाल तर महान ऐश्वर्य प्राप्त कराल व मोठ्या राज्याचे स्वामी व्हाल. ॥ १ ॥